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आतंकवाद और विश्व के दोहरे मापदंड

क्रांति
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वर्तमान समय में लगभग समस्त विश्व आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या से त्रस्त है हालाँकि विश्व स्तर के सभी आयोजनों में यह समस्या मुख्य रूप से उठाई जाती है तथा विश्व के समस्त शक्तिशाली देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट नज़र आते हैं| इस प्रकार के आतंकवाद विरोधी वक्तव्यों को, भारतीय राजनीतिज्ञों के अलावा किसी और देश के राजनीतिज्ञों से सुनकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो आज भारत की समस्या को विश्व ने समझ लिया है, हाँ वो एक अलग प्रश्न है की किस परिस्तिथियों में और कितने विलंभ से |
भारत एक ऐसा इकलोता देश है जिसे आतंकवाद के दंस को सबसे अधिक झेला है और ऐसा कहना अतिशयोक्ति भी नहीं होगा | पिछले कई दसको से भारत विश्व को यह समझाने में लगा था की आतंकवाद क्या है और इसके क्या गंभीर परिणाम हो सकतें है और कुछ ही वर्षों पहले शायद विश्व को समझ में आया की आतंकवाद क्या है| ऐसा कहने में मुझे कोई हिचक महसूस नहीं होती कि सायद यदि अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला न हुआ होता तो भारत आज भी प्रयासरत रहता यह बताने में की आतंकवाद क्या है| हाँ, यह सुनने में हस्यादपद है परन्तु सत्य है |
हाल ही में विश्व जगत में आतंकवाद का एक नया स्वरूप सुनने को मिला अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद| आतंकवाद के इन दो स्वरूपों से विश्व को अवगत कराया पाकिस्तान ने और संरक्षण दिया अमेरिका ने | हालाँकि भारत लगातार इस सोच का विरोधी रहा है और हमारे प्रधान मंत्री जी भी यूनाइटेड नेसन में कई बार यह प्रश्न उठा चुके है पर अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिले| पर एक बात थी जिस पर शायद विश्व एकजुट है और वो है “आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई” जिसने समस्त विश्व एकजुट है| पाकिस्तान भी उनमे से एक देश है| पाकिस्तान विश्व के एक ऐसे अजीबोगरीब देश के रूप में उभरा है जो आतंकवाद के खिलाफ है परन्तु आतंकवाद का पनाहगार है| और इससे भी अधिक आशचर्य की बात ये है की अमेरिका का रवैया उसके प्रति अभी भी नरम है|
वर्तमान समय में एक ऐसा घटनाक्रम हुआ की अमेरिका की दोमुही राजनीति विश्व के समक्ष बेपर्दा हो गयी| ऐसा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई रूस ने| अमेरिका जो पिछले कई वर्षो से सिरीया में आई.एस आई.एस के विरुद्ध जंग लड़ रहा था और उसे अभी तक ख़त्म नहीं कर पाया है| उस आई.एस आई.ए को ख़त्म करने का जिम्मा उठाया रूस ने और कुछ ही दिनों में रूस ने आई.एस आई.एस को बहुत कमजोर कर दिया और शायद कुछ ही दिनों में इस आतंकवादी संगठन को शायद कुछ वर्षो के लिए ख़त्म कर दे |
इस पुरे घटनाक्रम में मज़ेदार बात ये रही की अमेरिका ने रूस का साथ देने से इंकार कर दिया| ये बात सच में गंभीर है की आतंकवाद को विश्व से मिटाने का दम भरने वाला अमेरिका आज सिरीया में रूस का साथ क्यों नहीं दे रहा जबकि रूस का मकसद भी आतंकवाद मिटाना है| कही ऐसा तो नहीं अमेरिका की लड़ाई का मकसद कुछ और ही हो? अमेरिका सिरीया के असद सरकार के विरुद्ध है वही दूसरी ओर रूस असद का समर्थक है| अगर अमेरिका सीरिया से आई.एस आई.एस. को ख़त्म कर दे तो वहां सरकार किसकी होती? असद की? या फिर असद विरोधियों की जिन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त है? इस पुरे परिपेक्ष को समझा जाये तो हमें मालूम होगा की सीरिया में लड़ाई तीन पक्षों में है एक है असद सरकार , दूसरा अमेरिका समर्थित असद सरकार विरोधी जिन्हें अमेरिका हर संभव मदद पंहुचा रहा है फिर वो हथियार हो या पैसा| और तीसरा है आई.एस आई.एस. जो अमेरिकी सेना को सिरिया में पैर ज़माने के लिए उपयुक्त कारण प्रदान कर रहा है|
अमेरिका का रूस को सीरिया में समर्थन न देना स्वाभाविक है क्युकि अगर आई.एस आई.एस. ख़तम हो गया तो अमेरिका का वहां पर क्या किरदार रह जायेगा|
यह एक उदाहरण है जो यह समझाने में सक्षम है की अमेरिका भी बुरा आतंकवाद और अच्छा आतंकवाद की सोच से प्रभावित है| अगर ऐसा नहीं है तो अमेरिका सीरिया में रूस और असद सरकार के विद्रोहियो को हथियार और पैसा क्यों उपलब्ध करा रहा है क्या अमेरिका द्वारा दिए गए हथियार किसी की जान नहीं लेते? क्या अमेरिका समर्थित विद्रोही किसी को भयभीत नहीं करते?
हाँ, सरकारों में विरोध हो सकता है ये मुद्दा बाद में सुलझाया जा सकता है परन्तु अभी प्राथमिकता आई.एस आई.एस. के समूल विनाश को देनी चाहिए| न कि आतंक का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करना चाहिए| क्युकि आतंकवाद को लेकर अपनाये जा रहे ये दोहरे मापदंड संभवतः समस्त विश्व के लिए खतरे का सूचक है| इसका एक उदहारण पाकिस्तान भी है जो भारत में आतंकवादी भेजता है जिहाद के नाम पर और अब जब पाकिस्तान स्वयं भी आतंकवाद की समस्या से ग्रस्त है, ऐसी स्थिथि में वो उन आतंकवादियों की खिलाफ है जो वहां पर आतंकवाद फैला रहे हैं | मतलब भारत में आतंकवाद उचित है जो आज़ादी के लिए है और पाकिस्तान में जो जिहाद है वो आतंकवाद| यही स्थिति अमेरिका जैसे देश की है जो सीरिया में असद सरकार विरोधियो के आतंक को उचित बताता है और आई.एस आई.एस. को आतंकवादी संगठन|
शायद यही कारण रहा है कि पिछले कई दशको में भी आतंकवाद क्या हैइसकी परिभाषा आज तक यूनाइटेड नेसन भी तय कर पाने मे असमर्थ रहा है क्युकी यह जग जाहिर है कि अमेरिका जैसे देशों के भी कही न कही आतंकवाद जैसे शब्दों में लाभ छुपें है|

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